जैसे सौर मंडल में यात्रा करते करते कई नक्षत्र अपने भ्रमण पथ से भटक कर पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट हो रात्रि कालीन आकाश में एक अनोखी छठा बिखेरते हैं वैसे ही बहुत सारे नटखट-पीडिया के सन्देश अंतरजाल में भ्रमण करते हुए हमारे आपके मेल बॉक्स में प्रवेश कर जाते हैं जिनके रचनाकार गुमनाम होते हैं. ऐसी ही एक ज्ञान भरी रचना हमें कुछ महीनों पूर्व प्राप्त हुई थी जिसे हमने सहेज कर रख लिया था कि चलो किसी बुरे वक्त एक पोस्ट ठेलने के काम आ जायेगी. आज उसका सुयोग बन पड़ा है अतः उद्धृत है:
हे पार्थ !! (कर्मचारी),
इनक्रीमेंट/ अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ….
इनसेंटिव नहीं मिला, ये भी बुरा हुआ…
वेतन में कटौती हो रही है बुरा हो रहा है, …..
तुम पिछले इनसेंटिव ना मिलने का पश्चाताप ना करो,
तुम अगले इनसेंटिव की चिंता भी मत करो,
बस अपने वेतन में संतुष्ट रहो….
तुम्हारी जेब से क्या गया,जो रोते हो?
जो आया था सब यहीं से आया था …
तुम जब नही थे, तब भी ये कंपनी चल रही थी,
तुम जब नहीं होगे, तब भी चलेगी,
तुम कुछ भी लेकर यहां नहीं आए थे..
जो अनुभव मिला यहीं मिला…
जो भी काम किया वो कंपनी के लिए किया,
डिग़्री लेकर आए थे, अनुभव लेकर जाओगे….
जो कंप्यूटर आज तुम्हारा है,
वह कल किसी और का था….
कल किसी और का होगा और परसों किसी और का होगा..
तुम इसे अपना समझ कर क्यों मगन हो ..क्यों खुश हो…
यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का मूल कारण है…
क्यो तुम व्यर्थ चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो,
कौन तुम्हें निकाल सकता है… ?
सतत “नियम-परिवर्तन” कंपनी का नियम है…
जिसे तुम “नियम-परिवर्तन” कहते हो, वही तो चाल है…
एक पल में तुम बैस्ट परफॉर्मर और हीरो नम्बर वन या सुपर स्टार हो,
दूसरे पल में तुम टारगेट अचीव नहीं कर पाते हो.. ओर वर्स्ट परफॉर्मर बन जाते हो
ऎप्रेजल,इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो,
अपने विचार से मिटा दो,
फिर कंपनी तुम्हारी है और तुम कंपनी के…..
ना ये इन्क्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए हैं
ना तुम इसके लिये हो,
परंतु तुम्हारा जॉब सुरक्षित है
फिर तुम परेशान क्यों होते हो……..?
तुम अपने आप को कंपनी को अर्पित कर दो,
मत करो इनक्रीमेंट की चिंता…बस मन लगाकर अपना कर्म किये जाओ…
यही सबसे बड़ा गोल्डन रूल है
जो इस गोल्डन रूल को जानता है..वो ही सुखी है…..
वोह इन रिव्यू, इनसेंटिव ,ऎप्रेजल,रिटायरमेंट आदि के बंधन से सदा के लिए मुक्त हो जाता है….
तो तुम भी मुक्त होने का प्रयास करो और खुश रहो…..
तुम्हारा बॉस कृष्ण …
मार्च 16, 2009 को 6:30 पूर्वाह्न
सही गीतोपदेश है। बस नौकरी बचाए रखना, हे कृष्ण !
घुघूती बासूती
मार्च 16, 2009 को 8:34 पूर्वाह्न
कलयुगी गीतासार! आनन्द आ गया पढ़कर सुबह सुबह!!
सादर
समीर लाल
मार्च 16, 2009 को 8:47 पूर्वाह्न
यही है मुक्ति का मार्ग।:)
मार्च 16, 2009 को 9:02 पूर्वाह्न
आप ने मुझे शिवराम के नाटक ‘जनता पागल हो गई है’ का अपना रोल याद दिला दिया जिस में मैं एक पूंजीपति का अभिनय करते हुए इसी तरह गीता पढ़ते हुए अपने मजदूरों को बहकाने की कोशिश करता था।
मार्च 16, 2009 को 9:14 पूर्वाह्न
sachmuch, mazaa aa gayaa. Lekin Geetaa ko itnaa lightly lenaa shaayad haare liye bahut mahangaa saabit ho saktaa hai. Geetaa sansaar kaa shreshthatam Granth hai, us par chintan karte rahanaa bhee zarooree hai, – ham yah na bhoolen.
Saadar.
मार्च 16, 2009 को 9:45 पूर्वाह्न
ऎप्रेजल,इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो,
अपने विचार से मिटा दो,
फिर कंपनी तुम्हारी है और तुम कंपनी के…..
ना ये इन्क्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए हैं
ना तुम इसके लिये हो,
” हा हा हा हा हा हा हा हा गीतासार का ये रूप भी बहुत भाया…”
Regards
मार्च 16, 2009 को 9:49 पूर्वाह्न
मंदी का असर गीता उपदेश पर भी!
रोचक!
http://www.alpana-verma.blogspot.com
मार्च 16, 2009 को 10:42 पूर्वाह्न
हा हा हा ..क्या बात है ..बस नौकरी बचाए रखो यही आधुनिक गीता का सार तत्व है ..सुन्दर
मार्च 16, 2009 को 10:46 पूर्वाह्न
पढ़कर आनन्द आ गया वैसे यह ज्ञान नोकरी पेशा लोगो के लिये है हमारे तो किसी काम का नही है ।
मार्च 16, 2009 को 10:49 पूर्वाह्न
आनंद आगया आपकी गीता पढ़ कर ! नए रूप में आपका स्वागत है ! शुभकामनायें !
मार्च 16, 2009 को 10:52 पूर्वाह्न
इस टिप्पणी को प्रसाद समझ कर स्वीकार करें, अगर टिप्पणी न भी मिले तो लिखते रहें…कर्म करना कर्तव्य है, फल प्रभू के हाथ है. अतः टिप्पणी की चिंता छोड़ दें.
आनन्द दायक लिखा है….मंदी में थोड़ी चिंता कम हुई…
मार्च 16, 2009 को 11:02 पूर्वाह्न
सच तो वही लग रहा है जो आपने प्रस्तुत किया है। नासमझ बने रहने की समझदारी बरतने में ही बेहतरी है।
मार्च 16, 2009 को 12:00 अपराह्न
बहुत उत्तम ज्ञान आज के वक़्त का 🙂 शुक्रिया
मार्च 16, 2009 को 12:44 अपराह्न
वाकई सामायिक विश्लेषण है गीता का.
मार्च 16, 2009 को 1:37 अपराह्न
करीब दो साल पहले ये मेरे मेल बॉक्स में भी टपका था। पढ़कर खूब हंसा था और आज फिर पढ़कर आनंद आया।
मार्च 16, 2009 को 2:46 अपराह्न
Mandi ke daur mai achha gyan diya apne…
मार्च 16, 2009 को 3:09 अपराह्न
बस गोविन्द, मुक्त रहने का प्रयास करते हैं। बदले में नौकरी अक्षुण रहे – यह कृपा करना! 🙂
मार्च 16, 2009 को 3:11 अपराह्न
बाइ द वे, इस्लाम में खुदा से/द्वारा यह डायलॉग सम्भव है!
मार्च 16, 2009 को 3:23 अपराह्न
sachmuch aanandit kiya is gyan ne
मार्च 16, 2009 को 3:25 अपराह्न
आज के समय का मूल्यवान ज्ञानोपदेश । 🙂
मार्च 16, 2009 को 3:34 अपराह्न
आपने तो मंदी के दौर में बहुत अच्छा गीता ज्ञान दे दिया ! आभार |
मार्च 16, 2009 को 4:02 अपराह्न
सचमुच वर्तमान परिवेश में, उस वाली गीता से अधिक इस गीतासार का महत्व अधिक दिखाई देता है……
मार्च 16, 2009 को 4:34 अपराह्न
सही है जी,
बस इसी तरह की एक पोस्ट ब्लोगरों के लिए भी लिख डालो.
मार्च 16, 2009 को 6:20 अपराह्न
आपका जवाब नहीं।
मार्च 16, 2009 को 7:07 अपराह्न
श्री कृष्ण हैँ तो समूचे ब्रह्माँड के बीग बोस ही –
– लावण्या
मार्च 16, 2009 को 8:11 अपराह्न
मुझे तो लगता है कुछ दिनों में अर्जुन ही श्री कृष्ण को उपदेश देना शुरु कर देगा।
मार्च 16, 2009 को 8:12 अपराह्न
Pahle bhi padhi thi,par yah aisa hai ki kitni bhi baar padho,maja aata hai..
Prastut karne ke liye aabhaar.
मार्च 16, 2009 को 8:15 अपराह्न
बहुत शुक्रिया..थोडा हौसला मिला है.
रामराम.
मार्च 16, 2009 को 10:05 अपराह्न
गुरु जी धन्यवाद इस आधुनिक ग्यान के लिये, बहुत ही अच्छा लगा यह ग्याण, हमारी नोकरी भी कुछ डोल सी रही थी.
धन्यवाद
मार्च 17, 2009 को 8:40 पूर्वाह्न
पहले पढ़ चुका हूँ पर बार वही गीता वाला आनंद इसमें है -यह स्पेसिफिक जो है !
मार्च 17, 2009 को 9:31 पूर्वाह्न
dobara padhkar aanand ki praapti hui
मार्च 17, 2009 को 2:01 अपराह्न
gyaan se abhibhut hue..ab apana jeevan sanvarane ki…maya moh se virakta hone ki koshish me langege
मार्च 17, 2009 को 5:48 अपराह्न
Obviously the Aadhunik Gita Ghyan is very hilarious but what I like most is the begining of the post. “Jaise Saur Mandal Main Yatra Karte Kayee …………….. !! Beautiful Wordings !
मार्च 19, 2009 को 11:29 अपराह्न
aapka yah vyang paksch pahlee bar dekha . pns jee holee ke mood me hain abhee tak .
मार्च 20, 2009 को 10:49 पूर्वाह्न
आधुनिक गीता सार पढ़कर चक्षु खुल गए.. आभार
मार्च 20, 2009 को 3:16 अपराह्न
वाह सुब्रमनियन जी, कहां से ढूंढ लाये इस मोती को !!
मार्च 20, 2009 को 3:19 अपराह्न
abhi abhi meri naukari chhuti hai… lekin ise padhkar thodi der k liye sab bhul gayi pareshaaniyon ko hasya ka roop de dena yahi to jine ka adbhut dhang hai..
मार्च 21, 2009 को 4:11 पूर्वाह्न
पर प्रभु, या तो दीजिए ही नहीं, या फिर दे कर छीनिए मत। अब देखिए न, हमें AIG को डुबोने के पुरस्कार स्वरूप मिलियन डालर का बोनस मिला था, वह यह दुर्योधन ओबामा टैक्स के रूप में वापस ले रहा है। उस को रोकिए।
AIG का एक डाइरेक्टर
मार्च 21, 2009 को 11:35 अपराह्न
मत करो इनक्रीमेंट की चिंता…बस मन लगाकर अपना कर्म किये जाओ…
यही सबसे बड़ा गोल्डन रूल है
जो इस गोल्डन रूल को जानता है..वो ही सुखी है…..
सुंदर है गीता का ज्ञान ।
मई 18, 2009 को 8:56 अपराह्न
Wah padh kar anand aa gaya, aadhunik geeta gyaan bahut achchi lagi.
जून 14, 2010 को 6:13 अपराह्न
IT VERY SAME FULL FOR INDIA BECAUSE USE FOR PROFESSNAL
जून 14, 2010 को 6:22 अपराह्न
KRISHANA IS ALWAYS GREAT